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तु॒वि॒ग्रीवो॑ व॒पोद॑रः सुबा॒हुरन्ध॑सो॒ मदे॑ । इन्द्रो॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tuvigrīvo vapodaraḥ subāhur andhaso made | indro vṛtrāṇi jighnate ||

पद पाठ

तु॒वि॒ऽग्रीवः॑ । व॒पाऽउ॑दरः । सु॒ऽबा॒हुः । अन्ध॑सः । मदे॑ । इन्द्रः॑ । वृ॒त्राणि॑ । जि॒घ्न॒ते॒ ॥ ८.१७.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:17» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:1» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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शिव शंकर शर्मा

पुनः वही विषय आ रहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्धसः+मदे) अन्न के आनन्द में अर्थात् अन्न को पाकर सर्व प्राणी आनन्दित होवें, इस अभिप्राय से (इन्द्रः) परमदेव इन्द्र (वृत्राणि) निखिल विघ्नों को (विघ्नते) विनष्ट किया करता है। जिस इन्द्र के (तुविग्रीवः) ग्रीवास्थानीय सूर्य्यादि बहुत विस्तीर्ण हैं, पुनः (वपोदरः) जिसके उदरस्थानीय आकाश बहुत स्थूल और सूक्ष्म हैं और जिसके (सुबाहुः) बाहुस्थानीय पृथिव्यादिलोक सुशोभन हैं। हे भगवन् ! तू महान् है। तू हम लोगों के विघ्नों का विनाश किया कर ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो जन सदा ईश्वर के आश्रित होकर शुभकर्म में प्रवृत्त रहते हैं, उनके विघ्न स्वयं उसकी कृपा से विनष्ट हो जाते हैं, उसकी महान् महिमा है ॥८॥
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आर्यमुनि

अब सोमरसपान का महत्त्व कथन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्धसः, मदे) सोमात्मक अन्न का आह्लाद उत्पन्न होने पर (तुविग्रीवः) विस्तीर्ण कन्धरावाला (वपोदरः) स्थूल उदरवाला (सुबाहुः, इन्द्रः) दीर्घबाहुवाला योद्धा (वृत्राणि) शत्रुसमुदायों को (जिघ्नते) हनन करता है ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का भाव यह है कि ये शूरवीर योद्धा, जो विस्तीर्ण कन्धोंवाले, बलप्रद उदरवाले और जो बड़ी भुजाओंवाले हैं, वे सोमरस का पान करके युद्ध में शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हैं अर्थात् सोमरसपान से आह्लाद प्राप्त होने पर परपक्ष को जीतकर विजय का नाद बजाते हुए स्वराष्ट्र की रक्षा करते हैं ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तदनुवर्त्तते।

पदार्थान्वयभाषाः - इन्द्रः=परमदेवः ! अन्धसोऽन्नस्य। मदे=आनन्दे। अन्नं प्राप्य सर्वे जनाः सुखिनो भवन्त्विति हेतोः। वृत्राणि=निखिलान् विघ्नान्। जिघ्नते=हिनस्ति। कीदृगिन्द्रः। तुविग्रीवः=तुविर्विस्तीर्णा ग्रीवा=ग्रीवास्थानीयाः सूर्य्यादयो यस्य स तुविग्रीवः। पुनः। वपोदरः=वपं पीवरम्। उदरमुदरस्थानीयमाकाशं यस्य सः। पुनः। सुबाहुः=शोभना बाहवो बाहुस्थानीयाः पृथिव्यादिलोका यस्य सः ॥८॥
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आर्यमुनि

अथ सोमपानस्य महत्त्वं कथ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्धसः, मदे) सोमरूपान्नस्याह्लादे जाते (तुविग्रीवः) विस्तीर्णग्रीवः (वपोदरः) स्थूलोदरः (सुबाहुः, इन्द्रः) लम्बबाहुः योद्धा (वृत्राणि, जिघ्नते) शत्रून् हिनस्ति ॥८॥